तवलीन सिंह
भारत में शोहरत मुश्किल से मिलती है। सबसे ज्यादा शोहरत मिलती है हिंदी फिल्मों के सितारों को। सो, जबसे कुछ बहुत बड़ी अभिनेत्रियों की चमकती छवि पर कीचड़ उछालने लगा है एनसीबी (स्वापक नियंत्रण ब्यूरो), कई लोगों को अजीब-सा मजा आते दिख रहा है, जिसको वे छिपाने की कोशिश भी नहीं कर रहे हैं। अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है मुझे कि इस तरह का गंदा मजा लेने वालों में सबसे ऊपर नाम आते हैं उन टीवी पत्रकारों के, जिनको भेजा जाता है दीपिका पादुकोण जैसी अभिनेत्री की एनसीबी द्वारा तहकीकात की खबरें विस्तार से देने के लिए।
पिछले हफ्ते ऐसे लोग जरूरत से ज्यादा दिखे टीवी पर खबरें इस तरह की देते हुए। ‘जी हां, यह वो होटल है गोवा में, जहां दीपिका पादुकोण ठहरी हुई हैं और सारी रात उनको नींद नहीं आई, क्योंकि कल उनको पेश होना है एनसीबी के दफ्तर में’। नींद आई या नहीं आई दीपिका को, इस तथाकथित पत्रकार को कैसे मालूम? लेकिन प्रसिद्ध एंकर साहिबा ने उनको न टोका, न रोका, सिर्फ कहा- ‘बने रहिए हमारे साथ’। इसी किस्म के पत्रकार पहुंचे दीपिका के घर के सामने और इसी किस्म का मजा लेते दिखे।
मुझे इस किस्म की रद्दी पत्रकारिता से तकलीफ तो है ही, इससे भी ज्यादा तकलीफ हुई है यह देख कर कि इन प्रसिद्ध टीवी एंकरों में से एक ने नहीं ध्यान दिया कि एनसीबी के आरोपों का आधार हैं कुछ ऐसी बातें, जो बॉलीवुड की इन अभिनेत्रियों ने अपने निजी सेलफोन पर की थीं अपने कुछ निजी दोस्तों के साथ। जब इन बातों को एनसीबी बेझिझक टीवी चैनलों को दे रही है, तो क्या किसी के निजी जीवन में दखल देने का काम नहीं कर रही है? क्या ऐसा करना मना नहीं है भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में?
ऐसा करने की इजाजत किसने दी है भारत सरकार की आला जांच संस्थाओं को? दी है, तो क्या देश के सबसे प्रसिद्ध टीवी एंकरों का फर्ज नहीं बनता है इस तरह की खबरों को अपने शो पर न दिखाना? भूल गए हैं शायद कि आज जो बॉलीवुड की अभिनेत्रियों के साथ हो रहा है, कल उनके साथ हो सकता है। जिस तरह उनके निजी जीवन को खुली किताब की तरह रखने का काम कर रहे हैं एनसीबी के अधिकारी, उस तरह कल उनके साथ भी हो सकता है।
दो बार मैंने अपनी आंखों से देखा है, क्या होता है जब भारत सरकार अपने अधिकारियों को लोगों के निजी जीवन में दखल देने का आदेश देती है। अपनी आंखों से देखे हैं मैंने दोस्तों के निजी घरों में टैक्स विभाग के छापे और यकीन मानिए कि दोनों बार मुझे लगा कि ऐसा किसी भी लोकतांत्रिक देश में नहीं होना चाहिए, इसलिए कि छापे डालने जो लोग आते हैं, उनकी नजर में आप दोषी हैं, जब तक आप अपने आप को निर्दोष नहीं साबित कर पाते हैं। यानी भारतीय कानून प्रणाली का उल्टा। दूसरी बार ऐसा छापा मैंने देखा था सोनिया-मनमोहन सरकार के अंतिम दिनों में और इतना प्रभावित हुई उस छापे की चश्मदीद गवाह बन कर कि मैंने अपनी किताब ‘इंडियाज ब्रोकन ट्रिस्ट’ को शुरू किया उस छापे का वर्णन विस्तार से करके।
हुआ यह कि शनिवार का दिन था और मैं अपने एक दोस्त के घर में थी, जो खुद विदेश में थे। दोपहर का वक्त था और मैं थक कर अधसोयी हुई थी टीवी के सामने, जब नीचे से हल्ला सुनाई दिया। उठने वाली थी हल्ला का कारण जानने कि मेरे कमरे के अंदर कोई बीस अनजान व्यक्ति घुस आए ‘भारत सरकार, भारत सरकार’ चिल्लाते हुए और जैसे किसी मुजरिम के साथ बात कर रहे हों, मुझे ‘फौरन’ नीचे आने को कहा। इतना रोब और गुस्सा दिखा रहे थे कि मैंने सोचा गांव के कुछ गुंडे होंगे, सो नीचे उतरते हुए मैंने उनके पहचान-पत्र मांगे। जब साबित हुआ कि ईडी (प्रवर्तन निदेशलय) से आए थे, मैंने उनको समझाने की कोशिश की कि घर मेरा नहीं, एक दोस्त का है, जो विदेश में हैं, लेकिन उन्होंने कहा कि उनको घर की तलाशी लेने का फिर भी अधिकार है।
जब उन्होंने मेरे कागजात और मेरी अलमारी की तलाशी लेने की कोशिश की, मैंने उनको याद दिलाया कि मेरी निजी चीजों को छूने का उनको हक नहीं है। कोई फर्क नहीं पड़ा और देर रात उनका छापा चलता रहा। जब उनको कुछ नहीं मिला अपनी तलाशी से, तो मेरे साथ बदतमीजी से बात करने लगे। जब मेरा बयान लिया, मैंने उनके आतंकी बर्ताव के बारे में कहना चाहा, लेकिन इस बात की रिकॉर्डिंग करने से उन्होंने साफ इनकार कर दिया। उनके जाने के बाद मैं जब अकेली बैठ कर उस दिन की घटना के बारे में सोचने लगी, तो मुझे ऐसा लगा जैसे कि जो हुआ था मेरे साथ, किसी भी लोकतांत्रिक देश में किसी के साथ नहीं होना चाहिए। हत्यारों और चोरों के साथ भी नहीं, जब तक उनको दोषी नहीं साबित किया जाता है अदालत में।
पिछले सप्ताह जिस तरह बॉलीवुड की बड़ी-बड़ी अभिनेत्रियों की निजी बातें टीवी पर दिखाई गईं, वह गलत था। एक लोकतांत्रिक देश में तो बिल्कुल नहीं होना चाहिए था। किसने अधिकार दिया उनके निजी सेलफोन में से इनकी निजी बातें सुनने का? किसने अधिकार दिया एनसीबी को इन बातों को टीवी पर सुनवाने का?
भारतीय कानून के तहत क्या निर्दोष नहीं हैं हम सब, जब तक दोषी नहीं साबित किए जाते हैं? सरकारी अधिकारियों को किसी के निजी जीवन की सीमाएं लांघने का अधिकार किसने दिया है? यह सवाल अगर अभी तक आप नहीं पूछ रहे हैं तो पूछना शुरू कीजिए। याद रखिए कि जब सरकारी अधिकारी बेलगाम हो जाते हैं, खतरा आपको भी है।