पर्यटकों एवं वन्यजीव प्रेमियों के लिए अच्छी खबर है अब जल्द ही देश का एक और मुकुन्दरा हिल्स टाइगर रिजर्व के चार जॉन देखने के लिए खोल दिया जाएगा। सूत्रों के मुताबिक फरवरी तक इसकी अनुमति मिल सकती है।
टाइगर रिजर्व धोषित होने के बाद इसमें अबतक 4 बाघ छोड़ें जा चुके हैं। रिजर्व के सेल्जर क्षेत्र में एक हैक्टेयर में एक एनक्लोजर एवं 28 हैक्टेयर में एक अन्य एनक्लोजर सावन भादो क्षेत्र में बनाया गया है। यहां छोड़े गए बाघों की गतिविधियों पर कुछ दिन नजर रखी जा रही है, जब वे यहां के वातावरण में पूरी तरह से ढल जाएंगे तो उन्हें खुला छोड़ दिया जाएगा। जनवरी में बाघ-बाघिन का एक और लाने की कोशिश है। इसके बाद यहां 6 बाघ हो जाएंगे।
दरा, रावठ, बोराबस, कोलीपुरा चार ज़ोन के रिजर्व बफर जोन में पर्यटकों के लिए रोड नेट वर्क का कार्य जनवरी तक पूर्ण होने की आशा है।
अभी तक करीब 80 प्रतिशत कार्य पूर्ण कर लिया गया है। रिजर्व में भृमण के लिए मोरुकलां से प्रवेश देने की तैयारी है। पर्यटक करीब 25 किमी क्षेत्र में टाइगर एवं अन्य वन्यजीव देख सकेंगे। मार्ग में बर्ड वाचिंग के साथ साथ तालाब के किनारे कई पशु देखने को मिलेंगे।
मुकुन्दरा इको विकास समिति के माध्य्म से पर्यटक वाहनों का पंजीकरण किया जाएगा। पशु-पक्षियों की जानकारी देने के लिए 50 नेचर गाइड की भर्ती भी की जाएगी। इस से स्थानीय युवाओं को रोजगार भी मिलेगा। आस पास के क्षेत्र में सवाईमाधोपुर अभययारय की तरह पर्यटक सुविधाओं का विकास होगा।
मुकुन्दरा टाइगर रिजर्व राष्ट्रीय राजमार्ग 12 पर स्थित है। राष्ट्रीय उद्यान का क्षेत्रफल 249.41 वर्ग किलोमीटर है जब कि बाघ परियोजना का क्षेत्रफल 759.99 वर्ग किलोमीटर है। इसमें 417.17 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र कोर क्षेत्र है एवं 342.82 बफर जोन क्षेत्र है।
घना जंगल, पहाड़, झरने, पोखर, तालाब और सदानीरा चम्बल और प्रकृति की गोद में पलते सैकड़ों प्रजाति के वन्यजीव जैसा स्थान बाघों की बसावट के लिए मुकुन्दरा सुरक्षित, अनुकूल और आदर्श जगह है। इस अनूठे रिजर्व में वन्यजीव, वनस्पति, पुरा सम्पदा पर्यटकों को आकर्षित करती है।
वनस्पति एवं जैव विविधता इसकी विशेषता है। इसमें शुष्क, पतझड़ी वन, पहाडिय़ां, नदी, घाटियों के बीच तेंदू, पलाश, बरगद, पीपल, महुआ, बेल, अमलताश, जामुन, नीम, इमली, अर्जुन, कदम, सेमल और आंवले के वृक्ष पाये जाते हैं। यहां करीब 800 से 1000 चीतल, 50 से 60 के मध्य भालू, 60 से 70 पैंथर व 60 से 70 सांभर हैं। चम्बल नदी किनारे बघेरे, भालू, भेडिय़ा, चीतल, सांभर, चिंकारा, नीलगाय, काले हरिन, दुर्लभ स्याहगोह, निशाचर सिविट केट और रेटल जैसे दुर्लभ प्राणी भी देखने को मिलते हैं। विशेष प्रजाति का गगरोनी तोता यहां पाया जाता है जिसकी कंठी लाल रंग की एवं पंख पर लाल रंग का धब्बा होता है। इसे हीरामन तोता कहा जाता है। वन विभाग ने इसे झालवाड़ जिले का शुभंकर घोषित किया है।
पर्यटक मुकुन्दरा हिल्स टाइगर रिजर्व में 25 किलोमीटर जंगल की सैर के साथ चंबल की सफारी भी कर सकेंगे। पर्यटकों को चंबल में बोटिंग करवाई जाएगी। जवाहर सागर से भैंसरोडगढ़ तक बोट में सवार होकर चंबल के सौन्दर्य को नजदीक से निहार सकेंगे और साथ ही जंगल के दिलचस्प नजारों को आप कैमरें में कैद कर सकेंगे। यहां आपको ऐसे नजारे देखने को मिलेंगे की आज तक आपने देखे ही नहीं होंगे। मुकुन्दरा हिल्स टाइगर रिजर्व में बाघ आने के बाद हाड़ौती में पर्यटकों की संख्या में इजाफा होगा। इसके अलावा स्थानीय युवाओं को भी रोजगार मिलेगा। आने वाले समय में हाड़ौती पूरे देश में पर्यटन सर्किल के रूप के उभरेगा। यह रिजर्व अन्य टाइगर रिजर्वों से कहीं अधिक खूबसूरत, बड़ा और समृद्ध है। यह पहला टाइगर रिजर्व है, जहां लोगों को जंगल और जल दोनों मार्गों की यात्रा का अवसर मिलेगा। टाइगर रिजर्व के विकास के लिए 29 करोड़ का बजट स्वीकृत हो चुका है, 8 करोड़ मिलना शेष है। इसके अलावा 130 करोड़ केंपा फंड से मिलेंगे।
मुकुन्दरा हिल्स को राष्ट्रीय पार्क का दर्जा देने के लिए 9 जनवरी 2012 को अधिसूचना जारी की गई। जवाहर सागर अभयारण्य, चंबल घड़ियाल अभयारण्य, दरा अभयारण्य के कुछ भाग लगभग 199.51 वर्ग क्षेत्र को मिलाकर राज्य का तीसरा राष्ट्रीय पार्क बनाने की घोषणा की गई एवं 10 अप्रैल 2013 को टाइगर रिजर्व घोषित किया गया। यह राजस्थान का तीसरा टाइगर रिजर्व बनगया है। रणथंभौर एवं सरिस्का पहले से टाइगर रिजर्व हैं। उल्लेखनीय है कि मुकुन्दरा हिल में 1955 में दरा वन्य जीव अभयारण्य की स्थापना की गई थी।
अभयारण्य क्षेत्र में कोटा के शासक मुकुंद सिंह द्वारा स्थापित मुकुंद सिंह के महल एवं पहाड़ी की चोटी पर स्थित अबली मीणी का महल एवं इसके समीप ही गुप्तकालीन मंदिर भीम चौरी के अवशेष हैं। चित्तौड़गढ़ जिले में रावतभाटा के समीप प्राचीन बाडोली का प्रसिद्ध शिव मंदिर समूह है। राजस्थान का पहला मंदिर जिस पर निर्माण की तिथि अंकित है। पहाड़ियों में कोटा के राव रावठा गांव में रावठा महल दर्शनीय हैं। मुकुंदरा पहाड़ियों के शैलाश्रयों में आदिमानव द्वारा चित्रित शैलचित्र मिलते हैं। अभयारण्य क्षेत्र में रामसागर व झामरा नामक स्थानों पर जंगली जानवरों के अवलोकन के लिए अवलोकन ओदिया बनाई गई हैं। मुकुंदरा अभयारण्य से चंबल, काली सिंध, आहू, आमझर नदियाँ जुड़ी हुई हैं।
डॉ. प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवं पत्रकार
जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद की समाप्ति के बाद पर्यटन क्षेत्र को लगे नये पंख
जम्मू-कश्मीर की बेहतरी के लिए सरकार तो कदम उठा ही रही है, इस काम में जैसे कुदरत भी पूरा साथ दे रही है। इस बार गुलमर्ग में जबरदस्त बर्फबारी हुई है और नववर्ष पर वहाँ पर्यटकों की भीड़ उमड़ पड़ी मस्ती करने और आइस स्केटिंग का मजा लेने के लिए। जो कश्मीर कल तक आतंकवाद से ग्रस्त माना जाता था वहां 370 हटने के बाद से एक अलग तरह का माहौल है। लोग बिना किसी खौफ के यहाँ आ रहे हैं और अपनी छुटि्टयां गुजार रहे हैं जिससे जम्मू-कश्मीर पर्यटन को अच्छा लाभ हो रहा है। जरा इन नजारों को देखिये, जरा पर्यटकों के चेहरों की खुशी और मस्ती करते लोगों का अंदाज देखिये। गुलमर्ग में चारों और बिछी बर्फ की सफेद चादर पर कहीं आपको बर्फ से अठखेलियां करते हनीमूनर्स दिखेंगे तो कहीं चहकते और खेलते हुए बच्चे। बच्चों के लिए यहां बर्फ का मानव बनाना जैसे सैकेंड़ों का काम हो गया हो। बर्फ का पुतला बनाते बनाते रूई के फाहों के समान लगने वाले बर्फ के गोले एक दूसरे पर फेंक फिर प्यार जताने की प्रक्रिया में डूबे नवविवाहित जोड़ों की खुशी देखते ही बनती है। भयानक सर्दी पड़ रही है लेकिन कुदरत ने जम्मू-कश्मीर को इतनी खूबसूरती बख्शी है कि सभी के मुँह से यही निकलता है- 'जमीं पर अगर कहीं जन्नत है तो यहीं है, यहीं है, यहीं है।'
कश्मीर में बर्फबारी कोई पहली बार नहीं हुई है। बर्फीली सुनामी के दौर से भी घाटी गुजर चुकी है। मगर शांति की बयार के बीच होने वाली बर्फबारी ने एक बार फिर कश्मीर को धरती का स्वर्ग बना दिया है। कश्मीर में हालात सामान्य होते ही यहां पर्यटकों के आने का सिलसिला लगातार जारी है। देशभर के लोगों ही नहीं विदेशियों के लिए भी सैर सपाटे का प्रथम गंतव्य कश्मीर ही है। सफेद चादर में लिपटा हुआ गुलमर्ग और पहलगाम, किसी सपने जैसा लगता है। पहली बर्फबारी में ही गुलमर्ग में 1 से 2 फुट बर्फ ने कई जगह पहाड़ बना दिए थे तो पहलगाम में बर्फ गिरने का सिलसिला थम ही नहीं रहा था। उरी-मुजफ्फराबाद मार्ग पर एक किनारे से सड़क के दूसरे छोर तक दिखने वाली मीलों तक बर्फ की सड़क और उसके दोनों ओर चिनार के पेड़ों की कतारों से झांकती धुंध जो नजारा पैदा करती है उसे अपने कैमरे में कैद कर लेने को बेताब भीड़ की खुशी देखते ही बनती है।
तो इस तरह जम्मू-कश्मीर में एक नई सुबह हो चुकी है। 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर की तकदीर के दरवाजे खुल गये थे और राज्य के दो केंद्र शासित प्रदेशों का रूप ले लेने के बाद से प्रगति का सिलसिला लगातार आगे बढ़ रहा है।
सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करता है चाय के बागानों का शहर मुन्नार
भगवान का अपना देश कहे जाने वाले केरल की खूबसूरती इस दुनिया में सबसे निराली है। यहाँ का प्रसिद्ध हिल स्टेशन मुन्नार देशी ही नहीं विदेशी सैलानियों को भी अपनी ओर आकर्षित करता है। यह सही है कि कश्मीर की खूबसूरती की चर्चा दुनिया भर में होती है लेकिन अगर आप एक बार यहाँ आएंगे तो कहेंगे कि यह जगह कश्मीर से बढ़कर नहीं तो उससे कम भी नहीं है। यहाँ की एक और खासियत यह है कि आप भले यहाँ तीन या चार दिन का कार्यक्रम बना कर आये हों लेकिन यहाँ से जाने का मन नहीं करता और अकसर पर्यटक अपना स्टे यहाँ बढ़ा लेते हैं।
समुद्रतल से 1,700 मीटर ऊँचाई पर स्थित मुन्नार का दक्षिणी−पश्चिमी मैदानी इलाका तरंगों जैसा लगता है। मुन्नार को चाय के बागानों का शहर भी कहा जाता है। यहां आपको बड़ी संख्या में चाय के बागान देखने को मिलेंगे। मुन्नार की देखने लायक जगहों की बात करें तो इनमें- राजमाला, चितीरापुरम और इकोपाइंट प्रमुख हैं। मट्टुपेटी बांध भी पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र है। मुन्नार की असली सुंदरता पोतैमेदु में है, जो एक महत्वपूर्ण बागान है। यहाँ की झीलें और घने जंगल यहां की खूबसूरती में तो चार चांद लगाते ही हैं साथ ही आपका मन मोहने की क्षमता भी रखते हैं। मुन्नार पहाड़ों से तीन तरफ यानी मुद्रापजा, नल्लतनी और कंडाला से घिरा है। किसी समय मुन्नार ब्रिटिश सरकार का दक्षिणी भारत का गर्मियों का रिजॉर्ट हुआ करता था।
मुन्नार के पास ही स्थित है चाय का संग्रहालय जोकि टाटा टी संग्रहालय के नाम से मशहूर है यहां आपको कई दुर्लभ कलाकृतियां, चित्र और मशीनें देखने को मिलेंगी जो चाय के बागानों की उत्पत्ति और विकास के बारे में बताती हैं। कई प्रकार की चाय पत्तियां भी यहां मौजूद हैं जिन्हें चाहे तो खरीद भी सकते हैं।
वैसे तो मुन्नार के आसपास कई झरने हैं लेकिन अधिकतर पर्यटक पल्लिवासल और चिन्नाकनाल को देखना पसंद करते हैं। पल्लिवासल पावर हाऊस वाटरफाल्स के नाम से भी प्रसिद्ध है। मुन्नार से 15 किमी की दूरी पर स्थित है इरविकुलम राष्ट्रीय उद्यान जोकि मशहूर पर्यटक स्थल है। ये उद्यान लुप्तप्राय जीव नीलगिरी टार के संरक्षण के लिए जाना जाता है। इसके अलावा इरविकुलम राष्ट्रीय उद्यान कई तितलियों, जानवरों और पक्षियों की दुर्लभ प्रजातियों का बसेरा है। यहां आकर आप ट्रैकिंग करने का आनंद भी उठा सकते हैं। नीलकुंरजी फूल इसी उद्यान में पाया जाता है जिसके खिलने से लगता है जैसे पहाड़ियां नीली चादर से ढंक गई हों साथ ही यहां घुमावदार पर्वतों पर पड़ने वाली धुंध की चादर बहुत ही मनोरम दृश्य प्रस्तुत करती है। अनामुडी शिखर भी इसी उद्यान में स्थित है, ये शिखर दक्षिण भारत का सबसे ऊंचा शिखर है जिसकी ऊंचाई 2700 मीटर से भी ज्यादा है।
कैसे पहुँचें
मुन्नार के लिए आप हवाई मार्ग, रेल मार्ग या सड़क मार्ग तीनों का इस्तेमाल कर सकते हैं। मुन्नार के लिए सबसे नजदीक हवाई अड्डा कोच्चि और मदुरै है, जो 142 किलोमीटर की दूरी पर है। नजदीकी रेलवे स्टेशन कोच्यो और कोट्टायम हैं, जहां से मुन्नार के लिए ट्रेन जाती रहती है। मुन्नार जाने के लिए सड़क से पहुंच सकते हैं। लोकल बस और कैब आपको आसानी से शहर में मिल जाएंगी।
- प्रीटी
कश्मीर में चिल्लई कलां की शुरुआत, पड़ रही है खून जमा देने वाली ठंड
कहा जाता है कि धरती पर अगर कहीं स्वर्ग है, तो यहीं है, यहीं है, यही हैं। जी हाँ, धरती पर अगर कहीं स्वर्ग है तो वह है कश्मीर घाटी। आज हम आपको बताएंगे हाड़ कँपकँपा देने वाली ठंड में क्या है लोगों का हाल और बर्फबारी से लोग कितने हैं परेशान। साथ ही जानेंगे कश्मीर में शुरू हो चुके चिल्लई कलां के बारे में। कश्मीर में राजनीतिक और सामाजिक रूप से तो हालात पूरी तरह सामान्य हो चले हैं लेकिन मौसम जरा बेईमान बना हुआ है। खून जमा देने वाली ठंड के बीच वादी-ए-कश्मीर में चिल्लई कलां का आगाज हो चुका है। कश्मीर में 21 और 22 दिसम्बर की रात से भयानक सर्दी के मौसम की शुरूआत मानी जाती है। करीब 40 दिनों तक के मौसम को चिल्लई कलां कहा जाता है, इसमें अगले चालीस दिन तक बर्फबारी के साथ जमकर ठंड पड़ेगी। इस बार हुई बर्फबारी कई सालों के बाद सही समय पर हुई है। नतीजतन कुदरत का समय चक्र तो सुधरा गया लेकिन कश्मीरियों की परेशानियां बढ़ गईं क्योंकि पिछले कई सालों से बर्फबारी समय पर नहीं हो रही थी।
चिल्लई कलां करीब 40 दिनों तक चलता है और उसके बाद चिल्ले खुर्द और फिर चिल्ले बच्चा का मौसम आ जाता है। चिल्लई कलां के दौरान मौसम खराब रहने के कारण राजमार्ग के बार-बार बंद रहने का परिणाम यह होता है कि कश्मीरियों को चिंता इस बात की रहती है कि उन्हें खाने पीने की वस्तुओं की भारी कमी का सामना किसी भी समय करना पड़ सकता है। पहले चिल्लई कलां के शुरू होने से पहले ही कश्मीरी सब्जियों को सुखा कर तथा अन्य चीजों का भंडारण कर लेते थे। हरिसा और सूखी-सब्जियां अब सारा साल ही कश्मीर में उपलब्ध रहती हैं। चिल्ले कलां में इनकी मांग बढ़ जाती है। पहले यह सर्दियों में मिलती थी। इस समय करेला, टमाटर, शलगम, गोभी, बैंगन समेत कई अन्य सब्जियां और सूखी मछली भी बाजार में आ चुकी हैं। इन्हें स्थानीय लोग गर्मियों में सुखाकर रख लेते हैं ताकि सर्दियों में जब कश्मीर का रास्ता बंद हो जाए तो इनको पकाया जाता है। गोश्त के शौकीनों के लिए हरीसा की दुकानें पूरे कश्मीर में सजने लगी हैं। हरीसा-गोश्त, चावल व मसालों के मिश्रण से तैयार होने वाला विशेष व्यंजन है। हरिसा शरीर को अंदर से गर्म रखने के साथ कैलोरी को भी बनाए रखता है।
चिल्लई कलां के दौरान कश्मीर में लोगों का पहनावा बदल जाता है। मोटे ऊनी कपड़ों के साथ फिरन पहनने वालों की तादाद बढ़ जाती है। फिरन कश्मीर का पारंपरिक पहनावा है। गर्म कपड़े से बना फिरन कई रंगों में और डिजायनों में उपलब्ध रहता है। इस दौरान फेदर जैकेट और फर जैकेट की मांग बढ़ जाती है। चिल्लई कलां के दौरान वादी में पेयजल आपूर्ति अक्सर प्रभावित होती है। पारा जमाव बिंदु के नीचे चला जाता है। दबाव से पाइप फट जाती हैं। अगर पेयजल आपूर्ति की पाइपें ठीक रहती हैं तो लोगों के घरों में नलों का पानी जमा रहता है। सुबह नौ-दस बजे के बाद ही नलों में पानी का बहाव शुरू होता है। स्थानीय लोग पाइपों को मोटे गर्म कपड़ों के नीचे या फिर घास से ढक कर रखते हैं। कई लोग बाजार में उपलब्ध थर्मोकॉल भी इस्तेमाल करते हैं।
फिलहाल तो श्रीनगर स्थित मौसम विभाग ने कहा है कि अगले तीन-चार दिनों तक जबरदस्त हिमपात की संभावना है। अगले 40 दिनों तक न्यूनतम और अधिकतम तापमान, दोनों में गिरावट आएगी। हिमपात और बारिश भी होगी। लोगों के सामने एक ही विकल्प है कि लकड़ी जला कर हाथ तापा जाये क्योंकि मौसम की मार बिजली आपूर्ति पर भी पड़ती है।
- सुरेश एस डुग्गर