जो मांगोगे वही मिलेगा


सुधीश पचौरी


हाथरस का डरावना… हाथरस का हारर… हाथरस का हारर… हाथरस का डरावना… हाथरस की बेटी… हाथरस की बेटी… हाथरस की बेटी… हाथरस की दलित बेटी…
हाथरस की बेटी को न्याय दिलाने के लिए मरे जा रहे चैनलों की नजर में हाथरस की बेटी का ह्यरेपह्ण शुरू में सिर्फ चंद लाइनों की खबर थी, लेकिन जैसे ही पीड़िता सफदरजंग अस्पताल लाई गई और भीम आर्मी के चंद्रशेखर आजाद ने धरना प्रदर्शन शुरू किया, त्यों ही ह्यऊपर के आदेशह्ण के बहाने अधिकारियों ने रात के तीन बजे, रास्ते में ही कहानी का ‘द एंड’ कर दिया! साफ है :’न होगा बांस न बजेगी बांसुरी’!
पुलिस ने अपना कौशल दिखाया। रास्ते के किनारे लक्कड़-कंडे जुटा कर चिता बनाई, मिट्टी का तेल या डीजल डाला और माचिस दिखा दी। हो गया अंतिम संस्कार! अब बहसते रहो कि बलात्कार था कि नहीं? जब शव ही नहीं, तो क्या सिद्ध करोगे?
जिस तरह सुशांत की कहानी मुंबई पुलिस ने ‘मैनेज’ की, उसी तरह यूपी पुलिस ने ह्यमैनेजह्ण किया। कोई मरे या जिए सरकारों पर आंच न आए!
मगर कैसा दैव दुर्विपाक कि एक चैनल की रिपोर्टर ने चुपके से इस दिव्य दाह-संस्कार का वीडियो बना कर वायरल कर दिया और पुलिस को लेने के देने पड़ गए!
फिर भी अधिकारी अधिकारी ठहरे। तिस पर ‘ऊपर के आदेश’ का नशा कि बोल दिए कि पोस्टमार्टम की रपट में वीर्य का निशान नहीं मिला, इसलिए यह बलात्कार नहीं था… हाथरस अस्पताल में ‘रेप टेस्ट’ नहीं किया गया। सात दिन बाद पीड़िता के शरीर को साफ-सुथरा करके अलीगढ़ अस्पताल में टेस्ट किया गया!
एक बड़े पुलिस अधिकारी ने प्रेस को बताया कि पोस्टमार्टम की रिपोर्ट में उसके शरीर पर वीर्य के निशान नहीं मिले, इसलिए ह्यनो रेपह्ण! यह तर्क ‘दूसरा हारर’ था।
तीसरा हारर तब आया जब चैनलों ने एक मजिस्ट्रेट को पीड़ित परिवार को धमकाते दिखाया कि तुम्हें यहीं रहना है हमें भी यहीं रहना है, अगर तुम बार-बार बयान बदलोगे तो हम भी बदल जाएंगे… उसके बाद एंकर पूछते रहे कि परिवार को धमकी क्यों दी?
फिर कुछ चैनलों की बहसों ने ‘गैंग रेप’ को ‘नया नारमल’ ही बना डाला! बहसें बताती रहीं कि यूपी में इतने बलात्कार, राजस्थान में इतने बलात्कार, लेकिन केरल टाप पर। कुल भारत में इतने हजार बलात्कार! हर तीन-चार मिनट पर एक बलात्कार! हाथरस जाने से पहले राजस्थान का बलात्कार देखने क्यों न गए राहुल, प्रियंका!
हाथरस के बलात्कार बरक्स राजस्थान के बलात्कार की स्पर्धा करा कर चैनलों ने अंतत: बलात्कार को एक बार फिर नया ह्यनारमलह्ण बना दिया!
वह तो लखनऊ हाईकोर्ट ने इस मामले का स्वत: संज्ञान लेकर सरकार से सारे तथ्य पेश करने को कहा, तो कहानी की तोड़-मरोड़ पर कुछ देर विराम लगा, लेकिन फिर भी पुलिस ने पीड़ितों के घरवालों को मीडिया से न मिलने देने के लिए ह्यबैरीकेडह्ण लगाए रखे!
कुछ चैनलों की प्रमुख चिंता यह रहती है कि ऐसे मामलों में कहीं राहुल, प्रियका सुर्खी न ले उड़ें। इसके लिए उनको बहुत मेहनत करनी पड़ती है, जैसे कि वृहस्पतिवार को की। एक चैनल ने ‘एक्सपे्रस वे’ पर हाथरस के लिए पैदल जाते राहुल को आठ फ्रेमों में गिरते दिखाया तो दूसरे ने सोलह फे्रमों में गिरते दिखाया और युगपत सिद्ध किया कि राहुल को किसी ने गिराया नहीं था, वे खुद गिरे थे!
हाथरस की बेटी की कहानी के बाद सिर्फ एक चैनल ‘बिहार के बेटे’ की कहानी पर लगा रहा और ह्यगांधी जयंतीह्ण के बहाने कुछ ह्यमित्रोंह्ण द्वारा जंतर-मंतर पर की जाती ह्यभूख हड़तालह्ण को लाइव दिखाता रहा। कैमरों को देख युवा जुटते रहे और नारे लगाते रहे कि ह्यवी वांट जस्टिस फॉर सुशांत’… ‘रिया को फांसी दो’… ह्यछोटा पेंग्विन हाय हायह्ण… ‘बड़ा पेंग्विन हाय हायह्ण… ह्यधारा तीन सौ दो को शामिल करो’… ‘मर्डर का केस बनाओ’.. रिपोर्टर उछल-उछल कर कहता रहा कि यह अब विश्व आंदोलन है। ऐसा दिव्य कवरेज अन्यत्र कहीं नहीं दिखा!


यह है पत्रकारिता का ह्यनया नारमलह्ण, एकदम ह्यअभियानी पत्रकारिताह्ण कि ह्यजो मांगोगे वही मिलेगाह्ण! मर्डर मांगोगे तो मर्डर मिलेगा। तीन सौ दो धारा मांगोगे तो तीन सौ दो धारा मिलेगी! हम किसी को निराश नहीं करते। और उस खास चैनल को तो हरगिज नहीं करते, जो सबसे बड़ा ‘हल्लाबोल’ चैनल है!


आजकल सिर्फ खबर देना काफी नहीं। अपनी ‘राजनीतिक लाइन’ को सही करने के लिए आप जन-आंदोलन का आह्वान कर सकते हैं। कैमरे को देख जनता आएगी ही। उसे दिखा-दिखा कर आप कमजोर संस्थानों पर दबाव बना सकते हैं यानी कि ‘जो चाहोगे वही मिलेगा’!


हां, अपनी आवाज को जनता की आवाज की तरह बेचो। बिना प्रमाण के आप जनता से मर्डरह्…ह्यमर्डरह्ण के नारे लगवाओ तो
आत्महत्या
भी ‘मर्डर’ नजर आएगी। यह आपकी नहीं, जनता की आवाज होगी और जनता जब कहे कि वह हत्या है, तो उसे हत्या ही होना होगा, वरना अपन हत्या की ही हत्या कर देंगे।
कई बार लगता है कि सुशांत मामले को सिर्फ एक चैनल चला रहा है और उसको एक नेताजी चला रहे हैं!
इस बीच एक अदालत ने ‘बाबरी मस्जिद’ तोड़ने के सारे ह्यआरोपियोंह्ण को बरी कर दिया और लगा कि बाबरी तोड़ी नहीं गई, वह तो स्वयं ही ढह गई! फिर, बाबरी थी ही कहां? और अगर हो भी तो क्या कर लेती? जब हम कहते हैं कि वह ह्यनहींह्ण है तो वह ह्यनहींह्ण ही होती है!


न्याय के लिए इस तरह की ‘भूख हड़ताल’ की राजनीतिक उपयोगिता पायल घोष ने साबित की। उसने अनुराग कश्यप पर कथित ह्यरेपह्ण का मुकदमा दर्ज कराया, फिर भूख हड़ताल की धमकी दी कि अगर उसे न पकड़ा तो खैर नहीं! या तो धमकी दो या धमकी लो! बीच का रास्ता ही नहीं है!